Toll Tax: भारत के राजमार्गों पर यात्रा करने वाले लोगों के लिए एक बड़ी खबर है। टोल टैक्स भुगतान की प्रणाली में जल्द ही एक महत्वपूर्ण बदलाव होने वाला है। वर्तमान फास्टैग (FASTag) प्रणाली की जगह अब सैटेलाइट आधारित नई तकनीक आने जा रही है, जिससे टोल प्लाजा पर रुकने की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी। यह नई व्यवस्था ग्लोबल नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) पर आधारित होगी, जो वाहनों की यात्रा की गई दूरी के आधार पर टोल शुल्क की गणना करेगी।
टोल भुगतान प्रणाली का विकास
भारत में टोल टैक्स भुगतान की प्रणाली में समय के साथ कई बदलाव आए हैं। शुरुआत में, जब लोग एक राज्य से दूसरे राज्य में जाते थे, तो उन्हें टोल प्लाजा पर रुककर मैन्युअल रूप से नकद भुगतान करना पड़ता था। यह प्रक्रिया न केवल समय लेने वाली थी बल्कि इससे लंबी कतारें भी लगती थीं और यातायात में बाधा उत्पन्न होती थी।
फिर, भारत सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह प्रणाली की शुरुआत की, जिसे फास्टैग के नाम से जाना जाता है। फास्टैग प्रणाली में, वाहनों पर एक छोटा रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) टैग लगाया जाता है। जब वाहन टोल प्लाजा से गुजरता है, तो वहां लगे कैमरे और सेंसर इस टैग को स्कैन करके तुरंत वाहन मालिक के लिंक्ड बैंक अकाउंट या वॉलेट से टोल शुल्क काट लेते हैं।
ग्लोबल नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS)
अब भारत सरकार टोल भुगतान प्रणाली में और अधिक सुधार लाने के लिए एक नई तकनीक का उपयोग करने जा रही है। यह नई प्रणाली ग्लोबल नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) पर आधारित होगी। GNSS एक ऐसी प्रणाली है जो सैटेलाइट के माध्यम से वाहनों की स्थिति और गति का सटीक पता लगा सकती है।
इस नई व्यवस्था में, वाहन में एक इन-कार ट्रैकिंग डिवाइस लगाई जाएगी जो GNSS के माध्यम से वाहन द्वारा तय की गई दूरी का सटीक मापन करेगी। यह डिवाइस वाहन की यात्रा का विवरण सैटेलाइट को भेजेगी, जिसके आधार पर टोल शुल्क की गणना होगी। इससे टोल प्लाजा पर रुकने की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी, जिससे यात्रा में समय की बचत होगी और यातायात का प्रवाह सुचारू रहेगा।
जीरो टोल कॉरिडोर
GNSS प्रणाली की एक विशेष सुविधा यह है कि इसका उपयोग करने वाले वाहनों को पहले 20 किलोमीटर की यात्रा के लिए कोई टोल शुल्क नहीं देना होगा। इसे ‘जीरो टोल कॉरिडोर’ के नाम से जाना जाएगा। इसका मतलब है कि अगर आप 20 किलोमीटर से कम दूरी तय करते हैं, तो आपको कोई टोल टैक्स नहीं देना होगा। यह सुविधा विशेष रूप से उन लोगों के लिए फायदेमंद होगी जो नियमित रूप से छोटी दूरी की यात्रा करते हैं।
20 किलोमीटर से अधिक की यात्रा के लिए, टोल शुल्क वाहन द्वारा तय की गई वास्तविक दूरी के आधार पर गणना की जाएगी। इन-कार ट्रैकिंग डिवाइस से प्राप्त जानकारी के आधार पर, सिस्टम यह निर्धारित करेगा कि वाहन ने कितनी दूरी तय की है और उसी अनुसार टोल शुल्क लगाया जाएगा।
नई प्रणाली के लाभ
सैटेलाइट आधारित टोल भुगतान प्रणाली के कई लाभ हैं जो इसे वर्तमान फास्टैग प्रणाली से बेहतर बनाते हैं:
1.टोल प्लाजा पर रुकने की आवश्यकता नहीं: नई प्रणाली में वाहनों को टोल प्लाजा पर रुकने की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे यात्रा में समय की बचत होगी और यातायात का प्रवाह सुचारू रहेगा।
2.सटीक टोल गणना: GNSS प्रणाली वाहन द्वारा तय की गई वास्तविक दूरी के आधार पर टोल शुल्क की गणना करेगी, जिससे भुगतान अधिक न्यायसंगत होगा।
3.जीरो टोल कॉरिडोर: 20 किलोमीटर तक की यात्रा के लिए कोई टोल शुल्क नहीं लगेगा, जो छोटी दूरी के यात्रियों के लिए फायदेमंद होगा।
4.विवादों में कमी: मैन्युअल और यहां तक कि फास्टैग प्रणाली में भी कभी-कभी गलतियां होती हैं जिससे विवाद उत्पन्न होते हैं। GNSS प्रणाली के साथ, सटीक मापन होने से ऐसे विवादों में कमी आएगी।
5.यातायात प्रबंधन में सुधार: टोल प्लाजा पर लंबी कतारों से बचने से न केवल यात्रियों को आसानी होगी बल्कि समग्र यातायात प्रबंधन में भी सुधार होगा।
कार्यान्वयन और भविष्य की योजना
भारत सरकार जल्द ही इस नई प्रणाली को लागू करने की योजना बना रही है। शुरुआत में, यह प्रणाली कुछ चुनिंदा राजमार्गों पर परीक्षण के तौर पर शुरू की जा सकती है और धीरे-धीरे पूरे देश में इसका विस्तार किया जाएगा। इस नई प्रणाली के लिए वाहन मालिकों को अपने वाहनों में इन-कार ट्रैकिंग डिवाइस स्थापित करना होगा। इन डिवाइसों के वितरण और स्थापना की प्रक्रिया के बारे में सरकार जल्द ही विस्तृत दिशानिर्देश जारी करेगी। सैटेलाइट आधारित टोल भुगतान प्रणाली भारत के राजमार्ग नेटवर्क में एक महत्वपूर्ण सुधार होगी। यह न केवल वाहन चालकों के लिए यात्रा को अधिक सुविधाजनक बनाएगी बल्कि समग्र यातायात प्रबंधन में भी सुधार लाएगी। 20 किलोमीटर तक के जीरो टोल कॉरिडोर की सुविधा छोटी दूरी के यात्रियों के लिए विशेष रूप से लाभदायक होगी। इस नई प्रणाली के साथ, भारत अपने राजमार्ग नेटवर्क को अधिक कुशल और उपयोगकर्ता-अनुकूल बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है। यह प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की प्रगति का भी प्रतीक है।
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